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Friday 27 November 2015

सहिसुणता और असहीसुणता

 सहिसुणता और असहीसुणता की बहस में एक चीज समझ में नही आ रही हैं असहीसुणता पर बोलने पर सबसे ज्यादा विरोध भक्त क्यूँ करते हैं |   जबकि  कट्टर पंथियों द्वारा जो हत्याए हुयी हैं उनमे सीधे तौर पर राज्य सरकार जिम्मेदार हैं ।  क्यूंकि कानून व्यस्था प्रदेश की जिम्मेदारी होती हैं जिसके लिए सीधे तौर पर मुख्यमंत्री जिम्मेदार होता हैं । जिस तरह गुजरात दंगो के लिए मोदी को कहा जाता हैं  तो फिर  दादरी के लिए अखिलेश, मोहसिन शेख के मामले में कांग्रेस के पृथ्वीराज चौहान और कर्नाटक के सिद्धारमैया कलबुर्गी की मौत के जिम्मेदार हैं उनको आप क्यूँ बचाते हो कम से कम उनको भी सेकुलरिज्म का जो ठेका लिए उसका भुगतान करने दो माना की सबमे भक्त ही होते हैं पर जिम्मेदारी तो राज्य सरकार की बनती हैं  इसका मतलब  तुम्ही पैसे लेते हो तथाकथित सेक्युलर पार्टियों से और फिर दंगे हत्याए करते हो

Thursday 26 November 2015

#‎khudaikhidmatgaar‬ ‪#‎खुदाईखिदमतगार


जवाब उनको जो कहते हैं की खुदाई खिदमतगार का नाम ईश्वरीय सेवक क्यूँ नही या इसका मकसद क्या हैं ? तो भाई लोग दोनों का मतलब एक हैं जैसे आपके लिए भगवान् और मेरे लिए अल्लाह (वैसे मैं तो खुदाई खिदमतगार कहलाने के लायक ही नही लेकिन कोशिश पूरी हैं इंशा अल्लाह पूरा तो नही लेकिन कुछ हद तक बन जाऊंगा) खुदाई खिदमतगार का मकसद सिर्फ इंसानियत के परिपूर्ण समाज की कल्पना हैं जिसमे किसी भी तरह का कोई भेद न हो खान साहब (खान अब्दुल गफ्फार खान उर्फ़ सीमान्त गांधी ) का कहना था एक खुदाई खिदमतगार अपने ईश्वर से एकांत में वादा करेगा की वह जिंदगी भर सच्चा खुदाई खिदमतगार रहेगा | (खुदाई खिदमतगार बनने की शर्ते फिर कभी ) बाकी आपको क्यूँ लगता हैं ये सिर्फ मुसलमानों की संस्था हैं आप Kripalभाई Mahipal जी ‪#‎डॉ‬कुश कुमार Chinmay Khare को भी देख लीजिये मुझे छोड़ो मैं मुसंघी हूँ (आपके हिसाब से ) Hafeezभाई Faisalभाई को देख लीजिये या कभी समय निकाल कर थोडा टाइम उनके साथ बिताओ तब कोई फैसला करो खुद से कभी किसी भी व्यक्ति या संस्था का आकलन मत करो मेरे दोस्त ‪#‎khudaikhidmatgaar‬ ‪#‎खुदाईखिदमतगार‬

Sunday 15 November 2015

#पेरिस

कल पेरिस अटैक में कुछ बोलने या कहने की हिम्मत नही थी तो बस एक चुप्पी अख्तियार कर ली थी । लेकिन वो भी कुछ सांप्रदायिक लोगो को बर्दाश्त नही क्यूंकि कल उनके लिए मुसलमानो को घेरने का मौका था तो इंसानियत की मौत उनके लिए जश्न था । ‪#‎पेरिस‬ में जो भी हुआ उससे मुसलमान खुद को अलग नही कर सकता वो अलग बात हैं की भारतीय मुसलमानो का उससे क्या ताल्लुक़ लेकिन यहूदी अमेरिकी हाथ कहके नकारा भी नही जा सकता क्यूंकि करने वाले जो लोग थे वो मुसलमान ही हैं वो अलग बात हैं की उनका इस्लाम से कोई लेना देना नही हैं । हाँ तो साम्प्रदायिक लोग आप ने न कभी सांप्रदायिक सक्तियों का विरोध न किया हैं और ना ही करने की हिम्मत हैं । तो आपसे ये हो भी नही पायेगा। हमारे लिए बगदादी कल भी दुश्मन था और आज भी दुश्मन ही हैं,और इंशा अल्लाह हमेशा रहेगा क्यूंकि खलीफा कभी चोर और बलात्कारी नही होते । बाकी सेकुलरिज्म का नकाब उतर गया हैं जो सेक्युलर और इंसानियत की बात करते थे आप बस कम्बल और फल बाँट कर फोटो लगाओ वो आपका बढ़िया पी आर हैं । और ये धमकी देना बंद कीजिये की इंटेलिजेंस की लिस्ट बन गयी हैं या आपने सुपारी दे दी हैं । बस ये पता चल गया की मुसलमानों की सुपारी भी अब दी जाती हैं ।

Thursday 12 November 2015

बुर्के को गुलामी का प्रतिक बताती हैं।

किताबी चेहरा पर हमारी महिला मित्र हैं बहुत बड़ी समाजसेविका है, कई मुद्दों पर कार्यकर्म भी चलाती हैं, दिल से इज्जत करता हूँ इंशा अल्लाह आगे भी रहेगी ।बकरीद के समय से जानवरों के अधिकार की बात करने लगी ठीक हैं। बकरीद की कुर्बानी या फिर बलि पर एक बड़ी बहस की जरुरत हैं, ख़तम करवा पाना किसी एक के बस की बात नही (खैर उस पर फिर कभी) आज का मामला ये हैं की मोहतरमा हमेशा हिजाब और बुर्के को गुलामी का प्रतिक बताती हैं। जबकि शायद ये बताना भूल जाती हैं की दुसरे मजहब में भी शादी की पहचान बताने के लिए सिन्दूर और बिंदी की जरुरत पड़ती हैं,सही भी हैं । मेरा विरोध बस यही हैं की अगर कोई भी कार्य किसी से जबरदस्ती कराया जाए चाहे वो बुर्का हो या सिन्दूर बिंदी तो गलत हैं। अगर कोई खुद से लगाये तो उसमे क्या आपत्ति आपको सिन्दूर बिंदी से कोई दिक्कत नही हैं । मैडम आपसे यही विनती हैं की महिलाओं की स्थिति सभी धर्मो में कमोबेश एक ही हैं लेकिन विरोध सिर्फ बुर्के का समझ में नही आता अपने दुसरे सवाल भी उठाये हैं लेकिन ये बुर्के वाला थोडा ज्यादा हो गया । और अगर वाकई में महिला अधिकार को लेकर इतनी सजग हैं तो कुछ महिला शशक्तिकरण और सुरक्षा के लिए करिए ये सिर्फ धर्म के अनुसार विरोध सही नही । अगर बुरा लगे तो माफ़ी

Sunday 8 November 2015

मन से एक बात क्यूंकि आज बहुत ज्यादा ख़ुशी हैं ।

सुबह एक डर था मन में जब सुनाई दे रहा था भाजपा जीत गयी । भाजपा समर्थक मित्र हैं ट्विटर पर पोस्ट भी किये थे । "पुरुष्कार गया,सम्मान गया और अब बिहार गया" मन में यही सवाल था क्या (गोविन्द पंसारे, कलबुर्गी, नरेंद्र दाभोलकर, मोहसिन शेख, मुहम्मद अखलाक़ और भी बहुत से नाम हैं )जिन्हे सांप्रदायिक ताकतों ने भीड़ की शक्ल में मार दिया। क्या उनकी मौत सही थी ?  क्या दादरी में जो हुआ वो सही था । अल्लाह से  यही दुआ की अगर इस देश के नसीब में आपने साम्प्रदायिकता ही लिख दिया हैं तो कोई नही हम फिर से लड़ेंगे साम्प्रदायिकता के खिलाफ अगर आप अच्छा चाहते हैं । किसी के लिए नमाज़ रोज़ा नही किया पर आज सिर्फ साम्प्रदायिकता की हार के लिए किया, दुआ क़ुबूल भी हुयी नतीजा सामने हैं ।  एक अच्छी चीज ये भी हुयी तथाकथित सांप्रदायिक पहचान बन गयी पार्टी मजलिस इत्तेहादुल  मुस्लिमीन भी अपना खाता नही खोल पायी । बस दिल से दुआ हैं सभी बिहार के लोगो से की आपने अपने साथ साथ हमारे उत्तर प्रदेश को जलने से बचा लिया क्यूंकि यहाँ पर मुलायम सिंह यादव और मोदी मिलकर प्रदेश को मुजफ्फर नगर से भी ज्यादा जलाते । ख़ुशी हैं और उम्मीद भी अब इस देश में चुनाव में मुद्दे शायद साम्प्रदायिकता न हो । एक अच्छी रात हैं फिर से अच्छी सुबह  के लिए ।  ख़ुशी के आंसू शायद न दिखे पर हैं तो हैं ।  लव यु आल बिहारवासी आपने देश को फिर से एक नयी दिशा दी धन्यवाद ।