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Thursday 19 March 2015

बहराईच

दिल्ली में जब कोई मुझसे पूछता हैं कि कहाँ से हो तो गर्व से कहता हूँ, बहराईच से फिर उनको बताना पड़ता हैं कि लखनऊ से 120 कि०मी० की दूर है। या फिर सय्यद सालार मसूद गाजी रहमत उल्लाह अलैह जिनका सालाना इतना बड़ा मेला लगता हैं।क्योंकि और तो कुछ मशहूर हैं नहीं एक नेता थे जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर बहराईच का नाम रौशन किया, आरिफ मोहम्मद खान जो कि तथाकथित मुस्लिमों के रहनुमाओं की वजह से हाशिए पर धकेल दिये गये। न तो रेलवे बड़ी लाईन है और न ही ढंग की रोड कनेक्टिविटी । जब नीतीश कुमार रेलमंत्री थे तब से सुन रहा हूँ बड़ी लाइन के बारे में पर आज तक कुछ नहीं हुआ। आसमानी प्रत्याशी थे सोनिया गाँधी के करीबी यह बहराईच का विकास करेंगे लेकिन यह साहब तो अपनी ससुराल ही रहे पांच साल हा कभी कभार किसी के वहाँ चाय पर नजर आ जाते थे। अबकी बार महिला सांसद हुई पर सासंदी तो एक पूर्व विधायक जी के पास है। जिनको विकास तो करना नहीं हैं दो पैसे की साध्वियों को बुला कर महात्मा गाँधी के खिलाफ ऊलजलूल टिप्पणियां करवा लो, चाहे संघियो के वंशज अंग्रेजों के मुखिबर ही रहे हो। हां तो आधी सांसद महोदय आप से विकास तो होगा नहीं तो कृपया करके नकली साध्वियो को बुलाकर हमारे जनपद को बदनाम न करें तो मेहरबानी होगी

Tuesday 3 March 2015

अरविन्द केजरीवाल जी से छोटा मुंह और बड़ी बात

Right to left Arvind Kejriwal,Manish Sisodiya,Prashant bhushan,Yogendra Yadav
अरविन्द केजरीवाल जी से छोटा मुंह और बड़ी बात क्योंकि मु़झे लगता है कि आम आदमी पार्टी अब पूंजीवादी तथा कुछ साम्प्रदायिक शक्तियो की साजिश का शिकार हो रही है। क्युकि हाल कि दिनो में जो चल रहा है उससे यही बात सामने आ रही है। पहले शाजिया ईल्मी ( जो कि पार्टी के संस्थापक सदस्यो में से रही है) को पार्टी से साजिशन निकलने को मजबूर कर दिया गया हो। उसके बाद इस चुनावी नतीजो के बाद सबसे पहले अरविन्द केजरीवाल के सबसे करीबी मनीष सिसोदिया जिनको दिल्ली सरकार के सारे विभाग (पार्टी की कार्यकारिणी द्धारा लिया गया निर्णय) देकर उलझा दिया गया(जो खुद ही इतना कामो में उलझे रहेंगे तो केजरीवाल की क्या मदद कर पाएंगे ) जिससे वह खुद बखुद केजरीवाल से दूर हो गये उसके बाद नंबर आता है। प्रशान्त भूषण (जो कि गरीबो के वकील कहे जाते है मानवाधिकार मामलो के ज्यादातर मुकदमें खुद ही लड़ते है) को और योगेन्द्र यादव जिनके बारे में मुझे नही लगता कुछ भी बताने की जरुरत है।बस इतना जान लीजिए देश के जाने माने चुनावी विश्लेषक है। उनको हटाने के लिए पार्टी के अंदरखाने से विरोध के स्वर बाहर आ रहे है, उसमें सबसे आगे आईबीएन7 के पूर्व पत्रकार आशुतोष जिनको जब नौकरी जाने का खतरा लगा तो तुरंत नौकरी छोड़ कर पार्टी ज्वाइन कर लिया पर उनकी विश्वसनीयता पर अभी भी संशय बरकरार है। क्या पता वे पार्टी में पुंजीवादियो के समर्थन में एक मुहीम चला रहे हो और संजय सिंह जिनको आंदोलन और पार्टी बनने से पहले तक कोई नही जानता था। वे भी आशुतोष के साथ कंधे से कधा मिलाकर उनकी इस मुहीम में मदद कर रहें है। अब बचे अरविन्द केजरीवाल वह तो अपने आप आशुतोष, संजय सिंह, और कुमार विश्वास जैसे नेताओ से घिर कर रह जायेगें,फिर मुझे नही लगता अरविन्द केजरीवाल अपने विवके से कोई फैसला कर पायेंगें अगर करेंगें भी तो उसमें कहीं न कही संघ परिवार और पूंजीवादी ताकतो को ही मदद मिलेगी।