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Friday 31 July 2015

मैं भी कलाम तू भी कलाम

मैं भी याकूब तू भी याकूब कहने वालो, अगर मैं भी कलाम तू भी कलाम कह देते तो आज ये दिन देखना न पड़ता | आप तो जैसे ही लड़का बड़ा होता हैं मदरसे में डाल देते और फिर दुनियावी पड़ाई जो की आपके हिसाब से हराम हैं , वो करने नही देते | आज कुछ लोग जिनका तर्क हैं की बाल ठाकरे जैसे देश द्रोही को तिरंगे में लपेट कर हजारो की तादाद में लोग शामिल होते तो फिर याकूब के मय्यत से क्या दिक्कत ? दिक्कत यही की फिर तो आप में और बाल ठाकरे के भक्तो में क्या फर्क रह जायेगा | आप तो खुद भी फैसला नही ले पा रहे हो की आप हो क्या | कभी अल्पसंख्यक तो कभी मासूम तो 800 साल के हुक्मरान कभी खून में अफगानी घोड़े दौड़ने लगते हैं | जब तक आप अपने बेटी बेटो को दुनियावी पड़ाई से दूर रखोगे आपको कोई हक नही बनता इस मुल्क की न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाने का | मन की कोर्ट में फैसला मनुस्मिरती और बहुसंख्यको की भावनाओं का ख्याल रख कर दिया गया | पर आप ये क्यूँ भूल जातें हो की रात में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और उनके साथ जो कोई भी थे सभी बहुसंख्यक समाज से थे जो याकूब मेमन के लिए रात में लड़ रहे थे वो अलग बात हैं की नतीजा कुछ भी आया | तब मुसलमानों के तथाकथित मसीहा असदूदीन ओवैसी और आज़म खान या कोई और भी नही थे | अब जब फांसी हो गयी तो आप ओवैसी के साथ दहाड़े मर कर रो रहे हो | अभी भी वक़्त हैं मैं भी याकूब करके किसी आतंकवादी को हीरो मत बनाइए नहीं तो आने वाली पीड़ी थुकेगी आप सब पर | एक चैलेंज ही स्वीकार कर लीजिये हमें सिर्फ इस दौर में सिर्फ एक व्यक्ति ऐसा दे दीजिये जिसकी लोकप्रियता सभी धर्मो में हो, कलाम साहब जैसी हमें तो गर्व हैं कलाम साहब पर की जिसके बड़े भाई के पैर प्रधानमंत्री के स्पर्श किया और संघ प्रमुख मोहन भगवत को भी श्रद्धांजलि देनी पड़ी |

Monday 27 July 2015

कलाम साहब के निधन के साथ देश ने एक सामान्य व्यक्तित्व जीने वाले राष्ट्रपति को खो दिया


कलाम साहब के निधन के साथ देश ने एक सामान्य व्यक्तित्व जीने वाले राष्ट्रपति को खो दिया जिनको लोग प्यार से काका भी कहते थे। अपना राष्ट्रपति पद के दायित्व के निर्वहन के बाद भी जनता से जुड़े रहे और रोज बरोज नए से नए तरीको से लोगो से रूबरू होते थे | एक नाविक के बेटे से देश के राष्ट्रपति तक के सफ़र में उन्होंने काफी उतार चड़ाओ देखें | उनका जीवन तो हमेशा उपलब्धि से भरपूर रहा कभी मिसाइल मैंन के रूप में तो कभी महामहिम के रूप में | पर मेरे लिए तो कलाम साहब हमेशा सेकुलरिज्म के मार्गदर्शक की तरह रहे, क्यूंकि किसी मुसलमान व्यक्ति के नाम आने के बाद लोगो के जेहन में अबू सलेम, ओसामा या फिर दावूद जैसे कुख्यात लोगो का चेहरा सामने आ जाता हैं (इस पर फिर कभी कुछ गलतियां मुसलमानों की भी हैं) पर कलाम साहब को देखने के बाद लोग हमेशा उन्हें इज्जत से ही देखते थे | कलाम साहब एक करार तमाचा भी थे उन लोगो पर जो गाहे बगाहे मदरसों को आतंक का गढ़ बताने में नही चुकते (नाम फिर कभी क्यूंकि अभी उनका नाम लेकर गंदगी नही फैलानी) क्यूंकि उनकी शुरुवाती पड़ाई एक मदरसे में ही हुयी थी |

इस दुःख भरी घडी में खुदा से यही दुआ हैं की अल्लाह उनकी जन्नतुल फिरदौस अता करें आमीन |
और उनको हिम्मत जो उनकी मौत से बहुत दुखी हैं |