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Sunday, 20 September 2015

अकबर ओवैसी के पन्द्रह मिनट वाले बयां को और अकबर को छोड़ दें

अकबर ओवैसी के पन्द्रह मिनट वाले बयां को और अकबर को छोड़ दें, तो असद ओवैसी में कोई दिक्कत नहीं हैं | लेकिन उनकी छवि हैदराबाद के बाहर कट्टरपंथी नेता की बनी हैं | तो फिर जब आप तोगड़िया को गाली देते हैं, तो फिर ओवैसी को क्यों नहीं जबकि तोगड़िया के बयान हमेशा द्दुसरे मजहब के लिए जहर ही रहे हैं। और असद ओवैसी ने आजतक कोई भी बात देश या दुसरे समाज के खिलाफ नही कही मैंने बहुत गूगल किया पर कुछ मिला नही अगर किसी को मिले तो जरुर दें पर हाँ सुदर्शन वाला मत देना प्लीज | लेकिन जिस तरह मोदी भक्त चुनाव से पहले गुजरात मॉडल को देखने की बात करते हैं ओवैसी भक्त भी हैदराबाद माडल दिखलाते हैं | जिस तरह वे जरा विरोध करने पर पाकिस्तान जाने की बात तो ओवैसी वाले भी माँ बहेनो को शान में गुस्ताखी करने लगते हैं |
कुछ लोग जो इल्जाम लगाते हैं सीमांचल में चुनाव लड़ने को लेकर उसमे भी 24 सीटो में 12 भाजपा की और 2 लोजपा की हैं अब उसमे अगर ये अच्छा कर ले गये तो नुक्सान भाजपा का ही हैं अगर छदम सेकुलर पार्टी और कुछ बिकाऊ मुसलमान अपनी निर्दलीय ताल न ठोके तो | ओवैसी को लेकर अजीब असमंजस है Wasim भाई और Samarभैया कुछ रौशनी डाले आज वसीम भाई ने लिखा तो माजरत के साथ टैग करके पूछ लिया क्यूंकि यहाँ सिर्फ आप की समर भैया की राय पर फैसला लेना ज्यादा आसन रहता हैं | आज दिन में Mohammed Mehdi भाई से इस विषय पर चर्चा में एक बात जो जहन में है क्या ओवैसी के पास मुस्लिम शिक्षा के रिफार्म के लिए कोई खाका हैं | या फिर ये सब भी मोदी टाइप की कांग्रेस के पास नही हैं, और सच्चर कमिटी रिपोर्ट की बात मत कीजियेगा नही तो उनकी पार्टी को ही वोट करे फिर मुसलमान आपके पास भी तो कुछ होगा |


मुहम्मद अनस गुरु 

Tuesday, 3 March 2015

अरविन्द केजरीवाल जी से छोटा मुंह और बड़ी बात

Right to left Arvind Kejriwal,Manish Sisodiya,Prashant bhushan,Yogendra Yadav
अरविन्द केजरीवाल जी से छोटा मुंह और बड़ी बात क्योंकि मु़झे लगता है कि आम आदमी पार्टी अब पूंजीवादी तथा कुछ साम्प्रदायिक शक्तियो की साजिश का शिकार हो रही है। क्युकि हाल कि दिनो में जो चल रहा है उससे यही बात सामने आ रही है। पहले शाजिया ईल्मी ( जो कि पार्टी के संस्थापक सदस्यो में से रही है) को पार्टी से साजिशन निकलने को मजबूर कर दिया गया हो। उसके बाद इस चुनावी नतीजो के बाद सबसे पहले अरविन्द केजरीवाल के सबसे करीबी मनीष सिसोदिया जिनको दिल्ली सरकार के सारे विभाग (पार्टी की कार्यकारिणी द्धारा लिया गया निर्णय) देकर उलझा दिया गया(जो खुद ही इतना कामो में उलझे रहेंगे तो केजरीवाल की क्या मदद कर पाएंगे ) जिससे वह खुद बखुद केजरीवाल से दूर हो गये उसके बाद नंबर आता है। प्रशान्त भूषण (जो कि गरीबो के वकील कहे जाते है मानवाधिकार मामलो के ज्यादातर मुकदमें खुद ही लड़ते है) को और योगेन्द्र यादव जिनके बारे में मुझे नही लगता कुछ भी बताने की जरुरत है।बस इतना जान लीजिए देश के जाने माने चुनावी विश्लेषक है। उनको हटाने के लिए पार्टी के अंदरखाने से विरोध के स्वर बाहर आ रहे है, उसमें सबसे आगे आईबीएन7 के पूर्व पत्रकार आशुतोष जिनको जब नौकरी जाने का खतरा लगा तो तुरंत नौकरी छोड़ कर पार्टी ज्वाइन कर लिया पर उनकी विश्वसनीयता पर अभी भी संशय बरकरार है। क्या पता वे पार्टी में पुंजीवादियो के समर्थन में एक मुहीम चला रहे हो और संजय सिंह जिनको आंदोलन और पार्टी बनने से पहले तक कोई नही जानता था। वे भी आशुतोष के साथ कंधे से कधा मिलाकर उनकी इस मुहीम में मदद कर रहें है। अब बचे अरविन्द केजरीवाल वह तो अपने आप आशुतोष, संजय सिंह, और कुमार विश्वास जैसे नेताओ से घिर कर रह जायेगें,फिर मुझे नही लगता अरविन्द केजरीवाल अपने विवके से कोई फैसला कर पायेंगें अगर करेंगें भी तो उसमें कहीं न कही संघ परिवार और पूंजीवादी ताकतो को ही मदद मिलेगी।

Saturday, 24 May 2014

अटल जी का एक भाषण


19/08/2003 में अटल जी का एक भाषण था जिसमे वो प्रधान मंत्री की हैसियत से नेता विपक्ष को जवाब देते है की राजनीतिक क्षेत्र में जो आपके साथ कंधे से कन्धा मिलकर चलते हो विचारो के मतभेद होंगे | लड़िये पर सभ्य तरीके से लड़िये और इस देश की मर्यादाओ का ध्यान रखिये । इसको देखकर तो यही लगता हैं की आजकल के दौर में राजनीतिक स्तर कितना गिर चूका लोग जरा जरा सी बात में गाली पर उतर आते हैं चाहे वो नेता हो या फिर उनके चेले चपाड़ी । लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं तो लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से लड़िये हिंसा किसी भी रूप में सही नही ठहराई जा सकती हैं । 

उन अंधभक्तो को समर्पित जो बिना सर पैर के लड़ने आ जाते |