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Saturday, 13 April 2013

जेहाद क्या है?


जेहाद जुहद से बना है और जुहद का मतलब होता है संघर्ष। बम ब्लास्ट करने को जेहाद नही कहा जायेंगा| जेहाद अल्लाह पाक की खिदमत का स्वरुप है ।जेहाद के नाम पर अपनी अज्ञानता के कारण अतंकवादी इस्लाम को बदनाम करने अलावा और कुछ नही कर रहे हैं। आतंकवाद एक ऐसा युद्ध है जो अल्लाह के नाम पे अल्लाह के हुक्म की खुली नाफ़रमानी है। क्यूंकि कुरान पाक में अल्लाह पाक कहते हैं । ( कुरान ५:३२ में कहा गया है की अगर किसी ने एक बेगुनाह इंसान की जान ली तो यह ऐसा हुआ जैसे पूरे इंसानियत का क़त्ल किया और अगर किसी ने एक इंसान की जान बचाई तो उसने पूरी इंसानियत की जान बचाई.)

• जेहाद के कई पहलूँ होते हैं:- सुबह फजिर के वक़्त जब एक मुसलमान अज़ान की आवाज़ सुनता है तो नफ्स कहता है ज़रा और सोने दो पर वो अपने अंदर की आवाज को जोर देकर कहता है , ‘उठो अल्लाह की इबादत का वक़्त हो गया है. और एक जेहाद शुरू हो जाता है इन्सान और उसके नफ्स के बीच. यह भी एक जेहाद है |

• जब एक मुसलमान किसी गुनाह ( बुराई) की तरफ अमादा होता है तो उनके दिल से एक आवाज़ आती है देखो तुम ग़लत कर रहे हो | यह आवाज़ बलात्कारी के पास भी आती है, चोर के पास भी आती है और ज़ालिम के पास भी आती है | अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुन कर गुनाह से खुद को रोक लेना भी एक जेहाद है |

• समाज मैं जब बुराई बढ़ जाती है और नेकी कम हो जाती है तो बुराई को ख़त्म करने के लिए भी जेहाद किया जाता है । फिर चाहे वो कलम के ज़रिये समाज में, अमन कायम करने के लिए और ज़माने में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए. यह भी अल्लाह की इबादत का एक रूप है।

• इस्लाम हमें बताता है कि मुसलमानों को पहले अपने स्वयं के भीतर की बुराइयों के खिलाफ जेहाद करना चाहिए, हमारे बुरी आदतों के खिलाफ , झूठ बोलने की आदत के खिलाफ,फितना ओ फसाद फैलाने की आदत के खिलाफ, जलन, द्वेष, नफरत के खिलाफ , इस जेहाद को स्वयं के खिलाफ संघर्ष कहा जाता है।

यह जेहाद का जिक्र श्रीमद् भगवद गीता में कुछ ऐसे किया गया है:
• शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
• सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं, सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम् ॥२५॥

• भावार्थ : शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो ॥२५॥
• कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
• आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥२६॥
• भावार्थ : काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं ॥२६॥

अपनी मेहनत की कमाई से मजबूरो, लाचारो, यतीमो और बेवाओं और गरीबों की सहायता करना भी एक जेहाद है । इस जेहाद का दर्जा बहुत ऊंचा है। और सबसे आखिरी जेहाद है हथियार का, यह जेहाद केवल रक्षात्मक ही हो सकता है। या यह कह लें की सिर्फ बचाव मैं ही हथियार उठाया जा सकता है, सामने से हमला करना जेहाद नहीं…अपने बचाव मैं किये गए जेहाद का भी नियम है. बच्चों, औरतों और बूढ़े,और बेकसूरों जो आपको नुकसान नहीं पहुंचा रहे,उनको न तो कुछ कहो और न ही नुकसान पहुँचाओ, अगर कोई शांति की अपील करे तो उसे भी जाने दो। दुश्मन अगर पीठ दिखा जाए तो उस पर भी हमला मत करो.

यह जेहाद भी सिर्फ अल्लाह की राह में उसके दीन को बचाने के लिए किया जा सकता है।
अगर इस्लाम पे कोई हमला करे तो उसको बचाने का काम हथियार से होता है, जो की केवल रक्षात्मक ही हो सकता है और इस्लाम फैलाने का काम , कलम से, खुतबे से , नेक एखलाक पेश करने से, और न्याय करने से होता है. इस्लाम मैं जब्र (जबरदस्ती ) नहीं हैं और इस्लाम को फैलाने के लिए जब्र मना है.
कुरआन २: 256. दीन (के स्वीकार करने) में कोई ज़बर्दस्ती नहीं है.

२: १९० . जो तुम से लड़े, तुम भी उनसे अल्लाह की राह में जंग करो, परन्तु हद से न बढ़ो (क्योंकि) अल्लाह हद से बढ़ने वालों से प्यार नहीं करता। २: १९२ . अगर वह अपने हाथ को रोक लें तो अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला और दयावान है।

जब इस्लाम इस रक्षात्मक जेहाद मैं इतनी शर्तें लगा सकता है तो यह इंसानों की जान लेने जैसी हरकतों को कैसे सही ठहरा सकता है, जिसमें यह भी नहीं पता होता की मरने वाला, बच्चा है, की औरत, बूढा है या , जवान, गुनाहगार है या बेगुनाह ? इस्लाम ने उन लोगों को दो चेहरे वाला (मुनाफ़िक़) कहा है जो इस्लाम का नाम ले के कुरान की हिदायत के खिलाफ कोई भी काम अंजाम देते हैं. कुरआन में कहा गया है की (मुनाफ़िक़ यह समझते हैं कि) वह अल्लाह व मोमिनों को धोका दे रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि वह स्वयं को धोका देते हैं, लेकिन वह इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं।
जेहाद की बेहतरीन मिसाल आप को वाक़ए कर्बला मैं हजरत इमाम हुसैन रजि का आन्दोलन मानव इतिहास की एक अमर घटना जेहाद देखने को मिलेगी और यहीं पे जेहाद और युद्ध या आतंकवाद का फर्क भी देखने को मिलेगा. सन 61 हिजरी में हजरत इमाम हुसैन रजि अपने खानदान के साथ २ मोहर्र्र्र्म उल हराम के दिन जंग में शरीक हुए थे करबला कि उस लडाइ मे जालिमो ने बुड्डे जवान सब को शहीद कर दिया गया था । यह तक कि जालिमों नें इमाम हुसैन रजि के बेटे हजरत अली असगर जो कि सिर्फ ६ महीने थे उन जालिमो ने उस बच्चे भी शहीद कर दिया था उस दिन जो कुछ भी कर्बला की धरती पर हुआ, वह केवल एक असमान युद्ध और एक दुख भरी कहानी नहीं थी । ये घटना सदगुणों के सम्मुख अवगुणों और भले लोगों से अत्याचारियों का युद्ध थी ।

Wednesday, 10 April 2013

गाँधी की राह पर आम आदमी पार्टी ?



6 अप्रैल 2013 को आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने 22 मार्च से चल रहे 15 दिनो का उपवास यह कहते हुए समाप्त किया कि आज के ही दिन 1930 में गांधी जी ने नमक का कानून तोड़ा था और वे उसी से प्रेरणा लेते हुए अपना उपवास समाप्त कर रहे है। दूसरी तरफ आम आदमी के कार्यकर्ताओं के द्वारा यह प्रचारित करते हुए देखा गया कि वे लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया पर उनके उपवास को ज्यादा तव्ज्जोह न देने का आरोप लगा रहे हैं। वे कहते हैं कि मीडिया उनके उपवास से ज्यादा फालतू की खबरांे पर ध्यान दे रही है। खैर, वो भी सही कह रहे है। आजकल लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया से निष्पक्ष पत्रकारिता की उम्मीद एक कोरी कल्पना मात्र बन कर रह गया है। आज के संदर्भ में आम जनमानस के मन में मीडिया की भूमिका लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की जगह ह्यमीडिएटरह्य की बन गई है। लोग अपनी राजनीतिक पहचान पहचान बनाने के के लिए पत्रकारिता को भी चुनते है। दूसरी बात यह है कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की मीडिया के प्रति नाराजगी आखिर क्यूं है? जबकि वह कहते है कि उनकी पार्टी तो महात्मा गांधी की विचारधारा पर चलती है। पर उनको शायद यह याद नहीं है जब 15 अगस्त 1947 की रात में सारा भारत देश आजादी के जश्न में डूबा था। तब गांधी बापू बंगाल और पंजाब में चल रहे कत्ल-ए-आम से विचलित देश में अमन कायम करने के लिए बंगाल के बेलियाघाट में उपवास कर रहे थे। हिन्दुस्तान की आजादी के ऐतिहासिक दिन में बीबीसी ने महात्मा गांधी का देशवासियों के नाम संदेश प्रसारित करने का फैसला किया पर गांधी जी ने उनको मना कर दिया। तब बीबीसी ने कहा कि गांधी जी वास्तव में भारत की जनता की नुमांइद्गी करते हैं, और उनके संदेश को बहुत सी भाषाओं में अनुवाद किया जायेगा क्योंकि उनका संदेश जरुरी है। पर हमारे राष्ट्रपिता ने उनको उत्तर दिया कि मुझे अंग्रेजी नही आती। आप नेहरु जी से बात कर लीजिए। दो राज्यो में चल रहे सांप्रदायिक दंगो से आहत बापू ने आजादी के जश्न को मनाने के बजाय एक दिन का उपवास रखना ज्यादा जरूरी समझा। उस मौके पर गांधी जी ने अपना संदेश बीबीसी को देने के बजाय बेलियाघाट के मैदान में खड़े होकर दिया। जिसे 30 हजार लोगांे की भीड़ ने सुना। इस बात का जिक्र यहां पर इसलिये करना पड़ा क्योंकि आज आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता मीडिया पर इल्जाम आखिर क्यूं लगा रहे हंै? क्या उनके पास गांधी टोपी और असहयोग आंदोलन सिर्फ मीडिया में आने के लिए ही है अमली जामें में नहीं ।  क्योंकि दिल्ली में हर रोज किसी न किसी नाम से चल रहे अनशन से जनता बोर हो चुकी है और आईपीएल भी अपने शबाब पर है। अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल भी सरकार को ब्लैकमेल से ज्यादा कुछ नहीं कर पाए, और अब उनका भी जादू बेकार है।

अनस गुरु 

Tuesday, 26 March 2013

बालासाहेब से दूर होती शिवसेना




17 नवम्बर 2012 का दिन शायद सबको ही याद होगा  क्योंकि  इस दिन हिंदुस्तान ने अपना एक हिंदुत्व का चेहरा बन चुके शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे को खो दिया। जोकि शिवसेना के लिए  एक अपूर्णीय क्षति हैं। बाला साहेब ठाकरे सिर्फ एक कट्टर हिंदुत्ववादी नेता ही नहीं बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। हम सब उनका  ह्रदय से सम्मान करते हैं , जब बालासाहेब ठाकरे के निधन की खबर देशकी जनता को लगी तो पूरे  देश में शोक की लहर दौड़ पड़ी । लोगो के बीच इस बात की चर्चा होने  लगी कि अब शिवसेना पर से बालासाहेब के परिवार का वर्चस्व ख़त्म हो जायेगा | क्योंकि बालासाहेब छवि उनके बेटे उद्धव ठाकरे में नहीं बल्कि उनके भतीजे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे में दिखती हैं | हालाँकि राज और उद्धव के बीच तो बालासाहेब के सामने ही मतभेद था | इसी कारण से राज ने अपनी एक अलग पार्टी बनायीं थी |  इस वजह से उनकी  शिवसेना में वापसी लगभग असंभव सी लग रही हैं।  आज 1993 के मुंबई बम धमाकों के मामले में प्रतिबंधित हथियार रखने के दोष में बॉलिवुड स्टार संजय दत्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सजा सुनाई गई है | और उनकी सजा पर जब प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने महाराष्ट्र के राज्यपाल शंकर नारायण से अपील की है  कि वह भारतीय सविंधान के अनुछेद १६१ के तहत संजय दत्त को माफ़ कर दें | इससे राजनीतिक हलको में गर्माहट आ गयी |
अनुछेद १६१ (अनुछेद १६१ के अंतर्गत माफ़ी देने का अधिकार न्यायिक शक्ति से अलग हैं क्योंकि किसी अदालत के द्वारा फैसला सुनाने के बाद राज्यपाल या राष्ट्रपति को यह अधिकार है  कि वह दोषी की सजा कम या माफ़ कर सकता है )  जस्टिस काटजू की इस अपील का कुछ  लोगो ने समर्थन भी किया हैं। लेकिन  मुद्दा  यह है की शिवसेना की एमएलसी नीलम गोर्हे ने संजय दत्त की माफ़ी का विरोध किया है। इससे साफ़ लगता है की अब शिवसेना बालासाहेब की विचारधारा और उनके फैसलों को कोई महत्व नहीं देता | आज शिवसेना बालासाहेब ठाकरे से अलग अपना रास्ता बना रही हैं | क्योंकि जब 26 अप्रैल 1993 को फिल्म अभिनेता संजय दत्त  जुर्म कबूलने के बाद १६ महीने के लिए जेल गए थे तब उनके पिता सुनील दत्त जी हर तरफ से थक हार कर आखिर में  रात को ११ बजे बालासाहेब ठाकरे से मिलने मातोश्री गए । बालासाहेब ने उनसे सिर्फ एक ही सवाल किया था की क्या उनको लगता है की उनका बेटा  निर्दोष हैं | सुनील दत्त कहाँ हाँ उसके बाद बालासाहेब ने उनको दिलासा दी की उनका बेटा जल्द ही जेल से छूट जायेगा | क्योंकि  उस समय महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना गठबंधन की सरकार थी |  जमानत से बाहर आने के बाद संजय दत्त सबसे पहले सिद्धिविनायक मंदिर माथा टेकने गए फिर उसके बाद  मातोश्री में बालासाहेब से आशीर्वाद लिया  |   बालासाहब भी संजय दत्त को पूरा स्नेह देते थे | अफ़सोस आज जब संजय फिर से परेशानी में घिर गए तो उनके साथ ना ही उनके पिता सुनील दत्त साहेब है और ना ही बालासाहेब ठाकरे ऐसे में तो वर्तमान शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे का फ़र्ज़ बनता हैं कि अपने पिता की तर्ज़ पर संजय दत्त कि मदद करना चाहिए । बालासाहेब के लहू से सींची गयी शिवसेना आज संजय से खुद को अलग कर रही है ।