जेहाद जुहद से बना है और जुहद का मतलब होता है संघर्ष। बम ब्लास्ट करने को जेहाद नही कहा जायेंगा| जेहाद अल्लाह पाक की खिदमत का स्वरुप है ।जेहाद के नाम पर अपनी अज्ञानता के कारण अतंकवादी इस्लाम को बदनाम करने अलावा और कुछ नही कर रहे हैं। आतंकवाद एक ऐसा युद्ध है जो अल्लाह के नाम पे अल्लाह के हुक्म की खुली नाफ़रमानी है। क्यूंकि कुरान पाक में अल्लाह पाक कहते हैं । ( कुरान ५:३२ में कहा गया है की अगर किसी ने एक बेगुनाह इंसान की जान ली तो यह ऐसा हुआ जैसे पूरे इंसानियत का क़त्ल किया और अगर किसी ने एक इंसान की जान बचाई तो उसने पूरी इंसानियत की जान बचाई.)
• जेहाद के कई पहलूँ होते हैं:- सुबह फजिर के वक़्त जब एक मुसलमान अज़ान की आवाज़ सुनता है तो नफ्स कहता है ज़रा और सोने दो पर वो अपने अंदर की आवाज को जोर देकर कहता है , ‘उठो अल्लाह की इबादत का वक़्त हो गया है. और एक जेहाद शुरू हो जाता है इन्सान और उसके नफ्स के बीच. यह भी एक जेहाद है |
• जब एक मुसलमान किसी गुनाह ( बुराई) की तरफ अमादा होता है तो उनके दिल से एक आवाज़ आती है देखो तुम ग़लत कर रहे हो | यह आवाज़ बलात्कारी के पास भी आती है, चोर के पास भी आती है और ज़ालिम के पास भी आती है | अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुन कर गुनाह से खुद को रोक लेना भी एक जेहाद है |
• समाज मैं जब बुराई बढ़ जाती है और नेकी कम हो जाती है तो बुराई को ख़त्म करने के लिए भी जेहाद किया जाता है । फिर चाहे वो कलम के ज़रिये समाज में, अमन कायम करने के लिए और ज़माने में फैली बुराइयों को दूर करने के लिए. यह भी अल्लाह की इबादत का एक रूप है।
• इस्लाम हमें बताता है कि मुसलमानों को पहले अपने स्वयं के भीतर की बुराइयों के खिलाफ जेहाद करना चाहिए, हमारे बुरी आदतों के खिलाफ , झूठ बोलने की आदत के खिलाफ,फितना ओ फसाद फैलाने की आदत के खिलाफ, जलन, द्वेष, नफरत के खिलाफ , इस जेहाद को स्वयं के खिलाफ संघर्ष कहा जाता है।
यह जेहाद का जिक्र श्रीमद् भगवद गीता में कुछ ऐसे किया गया है:
• शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ, मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
• सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं, सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम् ॥२५॥
• भावार्थ : शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो ॥२५॥
• कामं क्रोधं लोभं मोहं, त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
• आत्मज्ञान विहीना मूढाः, ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः ॥२६॥
• भावार्थ : काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं ॥२६॥
अपनी मेहनत की कमाई से मजबूरो, लाचारो, यतीमो और बेवाओं और गरीबों की सहायता करना भी एक जेहाद है । इस जेहाद का दर्जा बहुत ऊंचा है। और सबसे आखिरी जेहाद है हथियार का, यह जेहाद केवल रक्षात्मक ही हो सकता है। या यह कह लें की सिर्फ बचाव मैं ही हथियार उठाया जा सकता है, सामने से हमला करना जेहाद नहीं…अपने बचाव मैं किये गए जेहाद का भी नियम है. बच्चों, औरतों और बूढ़े,और बेकसूरों जो आपको नुकसान नहीं पहुंचा रहे,उनको न तो कुछ कहो और न ही नुकसान पहुँचाओ, अगर कोई शांति की अपील करे तो उसे भी जाने दो। दुश्मन अगर पीठ दिखा जाए तो उस पर भी हमला मत करो.
यह जेहाद भी सिर्फ अल्लाह की राह में उसके दीन को बचाने के लिए किया जा सकता है।
अगर इस्लाम पे कोई हमला करे तो उसको बचाने का काम हथियार से होता है, जो की केवल रक्षात्मक ही हो सकता है और इस्लाम फैलाने का काम , कलम से, खुतबे से , नेक एखलाक पेश करने से, और न्याय करने से होता है. इस्लाम मैं जब्र (जबरदस्ती ) नहीं हैं और इस्लाम को फैलाने के लिए जब्र मना है.
कुरआन २: 256. दीन (के स्वीकार करने) में कोई ज़बर्दस्ती नहीं है.
२: १९० . जो तुम से लड़े, तुम भी उनसे अल्लाह की राह में जंग करो, परन्तु हद से न बढ़ो (क्योंकि) अल्लाह हद से बढ़ने वालों से प्यार नहीं करता। २: १९२ . अगर वह अपने हाथ को रोक लें तो अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला और दयावान है।
जब इस्लाम इस रक्षात्मक जेहाद मैं इतनी शर्तें लगा सकता है तो यह इंसानों की जान लेने जैसी हरकतों को कैसे सही ठहरा सकता है, जिसमें यह भी नहीं पता होता की मरने वाला, बच्चा है, की औरत, बूढा है या , जवान, गुनाहगार है या बेगुनाह ? इस्लाम ने उन लोगों को दो चेहरे वाला (मुनाफ़िक़) कहा है जो इस्लाम का नाम ले के कुरान की हिदायत के खिलाफ कोई भी काम अंजाम देते हैं. कुरआन में कहा गया है की (मुनाफ़िक़ यह समझते हैं कि) वह अल्लाह व मोमिनों को धोका दे रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि वह स्वयं को धोका देते हैं, लेकिन वह इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं।
जेहाद की बेहतरीन मिसाल आप को वाक़ए कर्बला मैं हजरत इमाम हुसैन रजि का आन्दोलन मानव इतिहास की एक अमर घटना जेहाद देखने को मिलेगी और यहीं पे जेहाद और युद्ध या आतंकवाद का फर्क भी देखने को मिलेगा. सन 61 हिजरी में हजरत इमाम हुसैन रजि अपने खानदान के साथ २ मोहर्र्र्र्म उल हराम के दिन जंग में शरीक हुए थे करबला कि उस लडाइ मे जालिमो ने बुड्डे जवान सब को शहीद कर दिया गया था । यह तक कि जालिमों नें इमाम हुसैन रजि के बेटे हजरत अली असगर जो कि सिर्फ ६ महीने थे उन जालिमो ने उस बच्चे भी शहीद कर दिया था उस दिन जो कुछ भी कर्बला की धरती पर हुआ, वह केवल एक असमान युद्ध और एक दुख भरी कहानी नहीं थी । ये घटना सदगुणों के सम्मुख अवगुणों और भले लोगों से अत्याचारियों का युद्ध थी ।
No comments:
Post a Comment