दिल्ली आज फिर से शर्मिंदा हैं।
दिल्ली आज फिर से शर्मिंदा हैं। भारत की राजधानी दिल्ली में जहाँ पर लोकतंत्र का मंदिर है जहाँ पूरे देश से चुने हुए हमारे माननीय आते हैं और देश का भविष्य तय करते हैं। पर इस निगोड़ी दिल्ली में क्या हमारी माँ बहन और बेटी सुरक्षित हैं। क्या इसका कारण सरकार का ढुलमुल रवैया हैं तो हमारी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं और सरकार ने तो हमें The Criminal Law Amendment bill 2013 दे दिया और जस्टिस वर्मा समिति ने भी अपनी रिपोर्ट भी देदी हैं । पर क्या ये सब हमारी हमारी बलात्कारिक मानसिकता को खत्म करने में कुछ कर सकती हैं। क्यूंकि हमारी मानसकिता महिलाओं को लेकर सिर्फ भोग विलासिता तक ही सीमित रह जाती है। हम लोग महिलाओं को चाहे वो नौकरानी या फिर किसी की बहन बेटी या बीवी के रूप में हम उसको सिर्फ भोगने की ही नज़र से ही देखते हैं । और अब तो छोटी छोटी बच्चियां भी सुरक्षित नहीं हैं कभी उन्हें टॉफी देने के बहाने कभी खलेने के बहाने अपने ही गली मोहल्लो में सुरक्षित नहीं है । कभी कभी तो लगता हैं की ये सारी खबरें झूठी हैं क्यूंकि कोई भी पुरुष इतनी हैवानो जैसी हरकत कर सकता हैं । अफ़सोस कुछ लोग तो पुरुष शब्द को ही एक गाली बनाने पर तुले हुए हैं । क्या हम अपनी मर्दानगी का सुबूत बलात्कार के जरिये ही दे सकते हैं । हमारी पुलिस तो औरत शब्द से महरूम ही लगती है अगर उनके घर में माँ बहन बेटी होती तो शायद वे किसी की बहन को विरोध प्रदर्शन करने पर थप्पड़ ना मारते और किसी गरीब बाप से उसकी बेटी की इज्ज़त की कीमत २००० न लगाते थू हैं ऐसी पुलिस । आज खुद को भी एक पुरुष कहने से पहले एक बार सोचना पड़ेगा । चीन द्वारा भारत की राजधानी दिल्ली को "रेप कैपिटल ऑफ़ वर्ल्ड" का नाम क्या अब हमे भी स्वीकार कर लेना चाहिए ? क्या दिल्ली दिलवालों की हैं ? या दिल-देहला देने वालों की ? ना आना दिल्ली प्रदेश लाडो।
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