आज फिल्म संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन भाग दो के 9 वर्ष पुरे हो गये और इसी के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री कार्यालय ने रिपोर्ट टू द पीपल २०१२-१३ नामक किताब को वितरित किया और इन्टरनेट संस्करण भी जारी किया और मैंने इसका इन्टरनेट संस्करण डाउनलोड किया ज्यादा तो मैंने भी नही देखा पर एक बात तो हैं उसमे दिल्ली मेट्रो का बहुत गुणगान किया जा रहा है कि वह सरकार कि देंन हैं पर क्या वाकई में मेट्रो सरकार कि देंन हैं। या मेट्रो मैन डॉक्टर ई श्रीधरन की जिन्होंने इस प्रॉजेक्ट को अपने स्टाइल से पूरा किया। जिन्होंने गैर जरूरी लोगो की दखलअंदाजी नजर अंदाज करते हुए, उन्होंने मेहनती लोगों का चयन किया। जहां एक टेंडर को हमारे देश में जारी करने में 6 से 9 महीनों का समय लग जाता है, वहां उन्होंने अपना काम सिर्फ 19 दिनों में ही पूरा कर लिया । जब सरकार ने इस प्रॉजेक्ट के लिए पैसे मुहैया कराने से हाथ खड़े कर दिए, तब डॉ. श्रीधरन ने सरकार का रोल ही काट दिया और जैपनीज बैंक ऑफ इंटरनैशनल को-ऑपरेशन से 5 बिलियन यूएस डॉलर के लोन की मंजूरी ली। दुनिया के टॉप-मोस्ट टैलेंटेड लोगों से उन्होंने अपनी टीम बनाई। यह सब भारत के इतिहास में पहली बार हो रहा था। नतीजतन, मेट्रो का पहला फेज निर्धारित समय से तीन साल पहले और बिना किसी तरह के भ्रष्टाचार के, बजट के अंतर्गत पूरा हुआ। और तो और सरकार ने उनसे एक और शर्त रखी कि जनता को कोई परेशानी न हो। डॉ. श्रीधरन ने न केवल इन बातों का ध्यान रखा, बल्कि जितना हो सके जनता को इसके चल रहे काम की भनक से भी दूर रखा। कहीं ऊपर से तो कहीं जमीन के नीचे से उन्होंने मेट्रो का रूट तैयार करने की प्लैनिंग की। डॉ. श्रीधरन ने दिल्ली मेट्रों को निर्धारित समय से तीन साल पहले और निर्धारित राशि से कम के बजट में सौभाग्यपूर्वक पूरा कर दिखाया। अब मेट्रो निर्माण प्रक्रिया में चाहे वो केंद्र सरकार हो या फिर दिल्ली सरकार मुझे तो नही लगता कि उनका किसी प्रकार का सहयोग हो । पर आखिर क्यूँ चुनाव नज़दीक होने कि वजह से सरकार दिल्ली मेट्रो को अपनी उपलब्धि बनाने पर तूली हुयी है और टेलीविज़न पर भी ये जोर शोर पर प्रचारित किया जा रहा है । अगर किसी को समझ आये तो मेरा भी ज्ञान बढाना महेरबानी होगी
Anas guru
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