किताबी चेहरा पर हमारी महिला मित्र हैं बहुत बड़ी समाजसेविका है, कई मुद्दों पर कार्यकर्म भी चलाती हैं, दिल से इज्जत करता हूँ इंशा अल्लाह आगे भी रहेगी ।बकरीद के समय से जानवरों के अधिकार की बात करने लगी ठीक हैं। बकरीद की कुर्बानी या फिर बलि पर एक बड़ी बहस की जरुरत हैं, ख़तम करवा पाना किसी एक के बस की बात नही (खैर उस पर फिर कभी) आज का मामला ये हैं की मोहतरमा हमेशा हिजाब और बुर्के को गुलामी का प्रतिक बताती हैं। जबकि शायद ये बताना भूल जाती हैं की दुसरे मजहब में भी शादी की पहचान बताने के लिए सिन्दूर और बिंदी की जरुरत पड़ती हैं,सही भी हैं । मेरा विरोध बस यही हैं की अगर कोई भी कार्य किसी से जबरदस्ती कराया जाए चाहे वो बुर्का हो या सिन्दूर बिंदी तो गलत हैं। अगर कोई खुद से लगाये तो उसमे क्या आपत्ति आपको सिन्दूर बिंदी से कोई दिक्कत नही हैं । मैडम आपसे यही विनती हैं की महिलाओं की स्थिति सभी धर्मो में कमोबेश एक ही हैं लेकिन विरोध सिर्फ बुर्के का समझ में नही आता अपने दुसरे सवाल भी उठाये हैं लेकिन ये बुर्के वाला थोडा ज्यादा हो गया । और अगर वाकई में महिला अधिकार को लेकर इतनी सजग हैं तो कुछ महिला शशक्तिकरण और सुरक्षा के लिए करिए ये सिर्फ धर्म के अनुसार विरोध सही नही । अगर बुरा लगे तो माफ़ी
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