इधर कुछ दिनों से किताबी चेहरा यानि की फेसबुक पर घमासान युद्ध चल रहा हैं। और हो भी क्यों न संघी और मुसंघियो की लड़ाई में सेकुलरिज्म को ही नुक्सान होता हैं सो हैं। पहली बात इधर एक चचा हैं नाम इसलिए नहीं लेंगे की आप लोग मुझसे ज्यादा समझदार हैं समझ जायेंगे और दूसरी ये की उम्र में ज्यादा है तो बदतमीजी हो जाएगी । हाँ तो बात ये हैं की चचा को बदलाव का बड़ा शौक हैं और इसी बदलाव के चककर में क़ुरान की जगह मनुस्मिर्ति ले आये और जो उसको पड़ कर मनुस्मिर्ति और मनुवाद पर सवाल उठाते हैं। चचा बात ये हैं की सवाल कोई उठाने पर आ जाये तो क़ुरान और इस्लाम पर भी उठा सकता हैं। और आपके अंदर अगर इतना ही कौम मिल्लत का दर्द हैं तो कौम के ठेकदारों पर सवाल उठाइए। अभी हम मुसलमानो के हालत इतने अच्छे नहीं हुए हैं की हम दूसरे मजहबो पर सवाल उठाये। और बात मजहब की तो किसी हम मजहब महिला ने बुर्क़े पर सवाल उठाया तो आपने उसको गन्दी गालियों से नवाजा शायद आप मुहम्म्द साहब की जिंदगी को भूल गए और वो आपका निजी मामला हैं । अंत में एक बात Samar भैया माफ़ी के साथ आपको मेंशन इसलिए कर देते हैं क्यूंकि आप तर्को से सम्झदेंगे गालियां या उन जैसी कोई बात तो नहीं ही कहेंगे। समर भैया हम मर्द कौन होते हैं औरतो कोक्या पहनना हैं और क्या नहीं पहनने और राय और मशवरा देने वाले औरत किसी भी मजहब की हो हम मर्दो की उनके ऊपर कोई ठेकेदारी नहीं चलेगी पूर्णतया स्वतंत्र हैं कुछ भी करने को और हाँ ये वाला भी नहीं चलेगी की बाहर कह दिया और घर में समझा दिया।
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